अब तक आपने गाय के गोबर से खाद या बायो गैस बनते देखा होगा। पिछले कुछ वर्षों में गाय के गोबर से बायो-सीएनजी (Bio-CNG)भी बनाई जाने लगी है। गाय-भैंस समेत अन्य जानवरों के गोबर के अलावा सड़ी-गली सब्जियों और फलों से भी बायो सीएनजी बनाई जा सकती है। यह प्लांट गोबर गैस की तर्ज पर काम करता है, लेकिन प्लांट से निकलने वाली गैस को बायो-सीएनजी में बदलने के लिए अलग से मशीनें लगाई जाती हैं। इस प्लांट को लगाने में लागत तो आएगी लेकिन समय को देखते हुए यह एक बड़ा और मुनाफे वाला बिजनेस है।
ऐसे बनती है बायो सीएनजी
महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा और कई अन्य राज्यों में बायो सीएनजी प्लांट चल रहे हैं। प्लांट में VPSA (वैक्यूम प्रेशर स्विंग एडजॉर्प्शन) तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इसके माध्यम से गाय के गोबर को प्यूरीफाई करके मीथेन का उत्पादन किया जाता है। इसके बाद मीथेन को कंप्रेस करके सिलेंडर में भर दिया जाता है। प्लांट लगाने में कुछ लागत तो आती है लेकिन यह कमाई का बेहतर जरिया बन सकता है। प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए मोदी सरकार बायो-सीएनजी को भी बढ़ावा दे रही है।
कितनी कमाई होगी
बायो सीएनजी की मांग दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। इस व्यवसाय से जुड़े लोग बायो सीएनजी को सिलेंडर में भरकर सप्लाई करते हैं। यह हमारे घरों में सप्लाई होने वाले एलपीजी सिलेंडर के समान है। इतना ही नहीं, बायो-सीएनजी बनाने के बाद जो गोबर बचता है, वह एक बेहतरीन उर्वरक के रूप में काम करता है। उस खाद को किसानों को बेचकर कमाई को और बढ़ाया जा सकता है। सरकारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद आप बायो सीएनजी का व्यावसायिक इस्तेमाल भी कर सकते हैं।
यह गैस आईजीएल खरीदती है
जैव ऊर्जा संयंत्रों से उत्पादित गैस के बड़े खरीदार इंडियन ऑयल और आईजीएल हैं। नेडा के परियोजना अधिकारी भजन सिंह ने बताया कि यह प्लांट भारत सरकार की जैव ऊर्जा नीति के तहत लगाया गया है। आईजीएल और गेल कंपनियां बायो प्लांट से 73 रुपये प्रति किलो के हिसाब से गैस खरीदती हैं।
सरकार भी सहयोग कर रही है
उत्तर प्रदेश कृषि अपशिष्ट आधारित बायो-सीएनजी, सीबीजी (संपीड़ित बायो गैस) इकाइयों को कई प्रोत्साहन देगा। मुख्यमंत्री पहले ही घोषणा कर चुकी हैं कि वह हर जिले में ऐसी इकाइयां स्थापित करेंगी. इन इकाइयों को स्थापित करने के लिए किसानों और व्यापारियों को सब्सिडी भी दी जाती है।