सोयाबीन किसानों के लिए महत्वपूर्ण कृषि सलाह, रखें इन बातों का ध्यान
सोयाबीन किसानों के लिए महत्वपूर्ण कृषि सलाह, रखें इन बातों का ध्यान
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सोयाबीन की खेती: प्रमुख क्षेत्रों में अब तक लगभग 60-75% क्षेत्रफल में सोयाबीन की बुवाई हो चुकी है, और शेष क्षेत्रों में यह प्रक्रिया चल रही है। शोध के अनुसार, सोयाबीन की बुवाई के लिए 20 जून से लेकर जुलाई के प्रथम सप्ताह तक का समय सबसे उपयुक्त माना गया है। इस स्थिति में सोयाबीन कषकों को निम्नलिखित क्रियाओं का पालन करने की सलाह दी जाती है:

जिन क्षेत्रों में सोयाबीन की बुवाई हो चुकी है

खरपतवारनाशक का उपयोग: जिन्होंने बुवाई के तुरंत बाद खरपतवारनाशक का उपयोग नहीं किया है, उन्हें सलाह दी जाती है कि खड़ी फसल में उपयुक्त खरपतवारनाशक का छिड़काव करें। छिड़काव करते समय पर्याप्त पानी का प्रयोग करें।

नालियों का निर्माण: जिन्होंने पारंपरिक सीड ड्रिल की सहायता से बुवाई की है, उन्हें 6 या 9 कतारों के अंतराल पर नालियां बनाने की सलाह दी जाती है। इससे अतिरिक्त वर्षा के पानी का निकास होगा और सूखे के दौरान जल संचयन में मदद मिलेगी।

कीट आकर्षक फसल: यदि संभव हो तो बी.बी.एफ/रिज फरो पद्धति से बनी नालियों में कीट आकर्षक फसल (सुवा/मेरीगोल्ड) की बुवाई करें।

सिंचाई के उपाय: जिन क्षेत्रों में बारिश नहीं हो रही है, वहां सिंचाई के उपाय अपनाएं। स्प्रिंकलर/ड्रिप/BBF/रिज फरो से बनी नालियों का उपयोग किया जा सकता है।

जिन क्षेत्रों में सोयाबीन की बुवाई होनी है

मानसून और वर्षा: मानसून के आगमन और न्यूनतम 100 मिमी. वर्षा होने के पश्चात ही सोयाबीन की बुवाई करें।

किस्मों का चयन: एक ही किस्म के बजाय विभिन्न समयावधि में पकने वाली 2-3 किस्मों की बुवाई करें।

कतारों की दूरी: सोयाबीन की बुवाई के लिए 45 सें.मी. कतारों की दूरी का पालन करें। बीज को 2-3 सें.मी. गहराई पर बुवाई करें और पौधे से पौधे की दूरी 5-10 सें.मी. रखें। बीज दर 60-70 किग्रा/हे का उपयोग करें।

रिज फरो पद्धति: सोयाबीन की बुवाई के लिए रिज फरो पद्धति का उपयोग करें। इससे विपरीत मौसम की स्थितियों में फसल की सुरक्षा होती है।

बीज और उर्वरक: बीज और उर्वरक को एक साथ मिलकर सोयाबीन की बोवनी नहीं करें। इससे बीज के सड़ने का खतरा रहता है। अनुशंसित उर्वरकों को बोवनी से पहले खेत में छिड़कें और तत्पश्चात सोयाबीन की बुवाई करें।

उर्वरकों का उपयोग: बोवनी के समय अनुशंसित उर्वरकों का उपयोग करें। 25:60:40:20 किग्रा/हे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश और सल्फर की पूर्ति बोवनी के समय करें।
मध्य क्षेत्र के किसान निम्न में से कोई एक स्त्रोत अपना सकते हैं. 1. यूरिया 56 कि.ग्रा. + 375-400 कि.ग्रा. सिंगल सुपर फॉस्फेट व 67 किग्रा म्यूरेट ऑफ पोटाश अथवा 
2. डी.ए.पी 140 किग्रा + 67 किग्रा म्यूरेट ऑफ़ पोटाश +25 किग्रा / हे बेन्टोनेट सल्फर अथवा
3. मिश्रित उर्वरक 12:32:16 @ 200 किग्रा 25 किग्रा / हे बेन्टोनेट सल्फर.

बीजोपचार: बोवनी के समय बीजोपचार अवश्य करें। इससे फफूंदजनित रोगों और कीटों से फसल को सुरक्षा मिलती है।

जैविक उत्पादन: जैविक उत्पादन करने वाले कषकों को ट्रायकोडर्मा विरिडे + ब्रैडीरायजोबियम जापोनिकम + पी.एस.बी./तरल बायोफर्टिलाइज़र से बीजोपचार करना चाहिए।

अंतरवर्ती फसलें: असिंचित क्षेत्रों में सोयाबीन के साथ अरहर की अंतरवर्ती फसल (4:2 अनुपात) उगाना अधिक लाभकारी है। सिंचित क्षेत्रों में मक्का, ज्वार, कपास, बाजरा जैसी फसलें उगाई जा सकती हैं।

खरपतवार नियंत्रण: बुवाई के तुरंत बाद उपयुक्त खरपतवारनाशकों का उपयोग करें। छिड़काव के लिए पर्याप्त पानी का उपयोग करें।

स्त्रोत : ICAR - Indian Institute of Soybean Research