शतावर की खेती: एक लाभदायक और औषधीय खेती
शतावर की खेती: एक लाभदायक और औषधीय खेती
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शतावर, जिसे संस्कृत में शतावरी के नाम से भी जाना जाता है, लिलिएसी कुल का आरोही पौधा है। इसकी विशेषताएँ और औषधीय महत्व इसे एक महत्वपूर्ण फसल बनाते हैं। शतावर की खेती मुख्य रूप से एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में की जाती है, और यह हिमालय क्षेत्र में 4000 फीट की ऊंचाई पर और मध्य प्रदेश में भी पाई जाती है। यह पौधा सामान्यतः 3-5 फीट ऊंचा होता है और इसकी जड़ों का औषधीय उपयोग होता है।

औषधीय महत्व
शतावर की जड़ों को औषधि निर्माता बलवर्धक/पौरुषवर्धक और स्त्रियों के लिए दुग्धवर्धक दवाओं में उपयोग करते हैं। इसकी जड़ों में उपस्थित सक्रिय यौगिक शरीर को ऊर्जा प्रदान करने के साथ-साथ स्त्रियों में दूध उत्पादन को बढ़ाने में सहायक होते हैं।

जलवायु और भूमि की तैयारी
शतावर की खेती के लिए उष्ण जलवायु और 10-50 डिग्री सेल्सियस का तापमान उपयुक्त होता है। बलुई दोमट मृदा जिसमें जल निकासी का अच्छा प्रबंध हो, शतावर की खेती के लिए सबसे अच्छी होती है। वर्षा ऋतु से पूर्व खेत की दो-तीन बार जुताई करनी चाहिए और प्रति हैक्टर 15 टन गोबर की खाद मिलानी चाहिए। बुआई के समय 100 कि.ग्रा. एनपीके और 100 कि.ग्रा. यूरिया की मात्रा को आधी-आधी मात्रा में पहली और दूसरी सिंचाई के बाद देना चाहिए।

पौध की तैयारी और बुआई
शतावर के पौधे बीज द्वारा तैयार किए जाते हैं। प्रति हैक्टर 12-13 कि.ग्रा. बीज की आवश्यकता होती है और बीज के अंकुरण में लगभग एक माह का समय लगता है। मई में बीज बोए जाते हैं और अगस्त में पौधे रोपण योग्य हो जाते हैं। 8 से 10 सें.मी. ऊंचाई के पौधों को 60-60 सें.मी. के अंतराल पर खेत में लगाया जाता है।

निराई-गुड़ाई
शतावर की खेती में निराई-गुड़ाई का काम माह में एक बार करना चाहिए, जिससे फसल स्वस्थ और बिना किसी अवांछित पौधों के बढ़ सके।

जड़ों की खुदाई
रोपण के 12 से 18 माह बाद पौधा पीला पड़ने पर जड़ों की खुदाई करनी चाहिए। जड़ों को साफ कर हल्की धूप में सुखाना चाहिए, जिससे उनका औषधीय मूल्य बना रहे।

उपज
शतावर की खेती से प्रति हैक्टर लगभग 850 क्विंटल गीली जड़ प्राप्त होती है, जो सूखने पर 85 क्विंटल रह जाती है। सूखी जड़ का बाजार मूल्य लगभग 30,000 रुपये प्रति क्विंटल होता है, जो इसे एक लाभदायक फसल बनाता है।

शतावर की खेती किसानों के लिए एक उत्कृष्ट विकल्प हो सकता है, जो न केवल आर्थिक रूप से लाभदायक है, बल्कि औषधीय महत्व के कारण भी महत्वपूर्ण है। उचित जलवायु, भूमि की तैयारी और देखभाल से किसान उच्च गुणवत्ता और मात्रा में शतावर की उपज प्राप्त कर सकते हैं, जिससे उनकी आय में वृद्धि हो सकती है।