जानिए देसी कपास में लगने वाली चित्तीदार सूंडी का प्रकोप एवं बचाव के बारे में
जानिए देसी कपास में लगने वाली चित्तीदार सूंडी का प्रकोप एवं बचाव के बारे में
Android-app-on-Google-Play

कपास भारत में खरीफ सीजन की मुख्य नकदी फसल है। इसकी खेती फाइबर और बिनौला उत्पादन के लिए की जाती है। भारत में कपास की चार किस्मों की खेती की जाती है। उत्तर भारत में मुख्य रूप से अमेरिकी और देसी कपास बोया जाता है। अमेरिकी कपास की खेती में ज्यादातर बीटी हाइब्रिड का इस्तेमाल किया जाता है, जो कपास की सुंडी के प्रति सहनशील है, लेकिन देसी कपास अभी भी इल्लियों से प्रभावित है। कपास की खेती को प्रभावित करने वाले कई कारक हैं। कपास की इल्ली अमेरिकी इल्ली, धब्बेदार इल्ली और गुलाबी इल्ली हैं। देसी कपास में धब्बेदार इल्ली का संक्रमण अधिक देखा गया है। अगर इस इल्ली को सही समय पर नियंत्रित नहीं किया जाता है, तो यह औसत उपज को काफी प्रभावित करती है।

देसी कपास का क्षेत्रफल साल दर साल घटता जा रहा है। अधिक उपज प्राप्त करने और किसानों को इसकी ओर आकर्षित करने के लिए देसी कपास में धब्बेदार इल्ली के संक्रमण का प्रबंधन बहुत जरूरी है। देसी कपास में धब्बेदार इल्ली के संक्रमण की निगरानी और नियंत्रण करके प्रति हेक्टेयर कपास की उपज बढ़ाई जा सकती है।

चित्तीदार सूंडी से होने वाले नुकसान के लक्षण

चित्तीदार सूंडी कपास, भिंडी, गुड़हल और कुछ अन्य फसलों पर अपना जीवन चक्र पूरा करती है। उत्तर भारत में इसकी दो प्रजातियों में से इरियास इंसुलाना अधिक प्रचलित पाई गई है। दोनों प्रजातियों के नुकसान का तरीका एक जैसा है।

फसल की बुवाई के 3 सप्ताह बाद ही चित्तीदार सूंडी का प्रकोप शुरू हो जाता है। फूल आने से पहले चित्तीदार सूंडी तने के ऊपरी हिस्से पर हमला कर उसमें छेद कर देती है। पौधे के ऊपरी हिस्सों को नुकसान पहुंचने से कई बार उगने वाला हिस्सा प्रभावित हो जाता है और पौधा ऊपर से सूख जाता है। इससे क्षतिग्रस्त फूलों की फलियों को दूर से ही पहचाना जा सकता है। फूल बनने से पहले ही उनकी पंखुड़ियां फैली हुई दिखाई देती हैं। देसी कपास में चित्तीदार सूंडी के प्रकोप से फूलों की डोंडिया लगातार नीचे गिरती रहती हैं। इसकी सूंडियां अपने आप को एक ही टिण्डे/फूल/कली तक सीमित न रखते हुए एक से ज्यादा टिण्डे/फूल/कली को नुकसान पहुंचाती हैं। नुकसान किये गए टिण्डे/कली पर इसका मलमूत्र साफ दिखाई पड़ता है। टिण्डा दूसरे कीटाणुओं के आक्रमण का शिकार हो जाता है। देसी कपास में चित्तीदार सूंडी के प्रकोप से फूल डोंडियों से टिण्डे पूरे बड़े आकार के नहीं बनते और टिण्डे लगातार नीचे गिरते रहते हैं। इसके कारण फसल के उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।



चित्तीदार सूंडी के प्रकोप की पहचान का तरीका

सुबह जल्दी उठकर अपने खेत का निरीक्षण करें और खेत में 4-5 जगहों से गिरे हुए 100 फूल डोंडियां को उठाकर देखें। अगर इन फूल डोंडियों पर छेद और इल्ली का मल दिखाई दे तो फसल पर चित्तीदार सूंडी का आक्रमण हो सकता है।

चित्तीदार सूंडी का नियंत्रण

खेत में नीचे गिरी 100 फूल डोडियों में से 5 फूल डोडियों पर चित्तीदार सूंडी का प्रकोप हो, तो इसकी रोकथाम के लिए छिड़काव करने की जरुरत है। सूंडी के नियंत्रण के लिए निम्नलिखित कीटनाशकों का छिड़काव करें:
  • चित्तीदार सूंडी के निरीक्षण के लिए खेत में प्रति हेक्टेयर स्लीव या मोथ कैच 2 फेरोमोन ट्रैप लगाना चाहिए, ताकि किसान समय रहते सूडियों के संक्रमण की पहचान कर सकें। यदि नुकसान के लक्षण दिखाई दें तो नीम आधारित कीटनाशक जैसे निम्बेसिडिन 1.0 लीटर + 1 ग्राम डिटर्जेंट पाउडर प्रति लीटर पानी का एक या दो छिड़काव 200 लीटर पानी में एक एकड़ में करना चाहिए। ये सभी रस चूसने वाले कीटों और कैटरपिलर की संख्या को कम करने में सहायक हैं।
  • खेत का नियमित निरीक्षण करते रहें। देसी कपास में फूलों के गुच्छे और फूल सबसे पहले इन सूडियों के पतंगों को आकर्षित करते हैं। इसलिए जब भी फसल में 10% पौधों पर फूल आने लगें या जुलाई के पहले सप्ताह में, बचाव के उपाय के तौर पर सिंथेटिक पाइरेथ्रोइड जैसे फेनप्रोपेथ्रिन 10 ईसी/300 मिली या डेल्टामेथ्रिन 2.8 ईसी/160 मिली या फेनवेलरेट 20% ईसी/100 मिली या साइपरमेथ्रिन 25% ईसी/80 मिली का प्रति एकड़ छिड़काव करना चाहिए। 
  • इसके बाद खेत का नियमित निरीक्षण करते रहें और अगर फिर से चित्तीदार इल्ली का प्रकोप आर्थिक सीमा को पार कर जाए, तभी अगला छिड़काव करें। जैसे- स्पिनोसैड 48 एससी/75 मिली या फ्लूबेंडियामाइड 480 एससी/40 मिली या आईडोक्साकार्ब 15% ईसी/200 मिली का प्रति एकड़ छिड़काव करें। इसके अलावा, आप प्रोफेनोफॉस 50 ईसी/500 मिली या इथियोन 50 ईसी/800 मिली का प्रति एकड़ छिड़काव कर सकते हैं। इससे चित्तीदार सूंडी के साथ-साथ सफेद मच्छर व मिलीबग नियंत्रण करने में सहायता मिलती है।