खरीफ सीजन में ऐसे करें अरहर की खेती, कम लागत में होगी बंपर पैदावार
खरीफ सीजन में ऐसे करें अरहर की खेती, कम लागत में होगी बंपर पैदावार
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अरहर, जिसे आम तौर पर 'तुअर' या 'तूर' के नाम से जाना जाता है, एक बहुत ही फायदेमंद दलहनी फसल है। चने के बाद, तुअर देश की सबसे महत्वपूर्ण दलहनी फसल है। देश की महत्वपूर्ण दलहनी फसल - इसका सेवन मुख्य रूप से 'दाल' के रूप में किया जाता है। अरहर के बीजों में आयरन, आयोडीन भरपूर मात्रा में होता है। अरहर में लाइसिन, थ्रेओनीन, सिस्टीन और आर्जिनिन आदि जैसे आवश्यक अमीनो एसिड भी भरपूर मात्रा में होते हैं।

अरहर की फसल के लिए मिट्टी ऐसी होनी चाहिए जिसमें जल निकास की उचित व्यवस्था हो। यदि खेत में पानी भर जाता है तो फसल को भारी नुकसान हो सकता है। मिट्टी का pH मान 5.5-8 के बीच होना चाहिए। अरहर में मृदा जनित रोगों की रोकथाम के लिए लगातार कई वर्षों तक एक ही खेत में अरहर की फसल नहीं उगानी चाहिए। बुवाई से पहले खेत की एक बार गहरी जुताई कर देनी चाहिए तथा 2-3 बार हैरो चलाकर मिट्टी को भुरभुरा कर लेना चाहिए।

सिंचित क्षेत्रों में अरहर की अगेती फसल सिंचाई के बाद मध्य जून में बोनी चाहिए। मेड़ों पर बोने से अच्छी उपज मिलती है। बोने के समय पंक्तियों के बीच की दूरी 30-45 सेमी तथा पौधों के बीच की दूरी 5-10 सेमी होनी चाहिए। पंक्तियों के बीच दूरी रखना सही रहता है। खरीफ की बुवाई के लिए 15 से 18 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज पर्याप्त होता है तथा बीज को 4-5 सेमी गहराई पर बोना चाहिए।

प्रयोगों से यह सिद्ध हो चुका है कि मेड़ों पर अरहर की बुआई करने से न केवल पैदावार बढ़ती है, बल्कि इस तकनीक को अपनाने से जलभराव से होने वाले नुकसान से भी बचा जा सकता है। साथ ही फफूंद जनित रोगों का हमला भी कम होता है।

अरहर की उन्नत किस्में जैसे पूसा 16, पूसा 991, पूसा 992, पूसा 2001, पूसा 2002, पूसा 33, पूसा 855, पूसा 9, उपस 120, प्रभात, बहार और टाइप-21 शीघ्र पकने वाली किस्में हैं तथा पंत अरहर 291, मानक, अमर, नरेन्द्र अरहर 1, नरेन्द्र अरहर 2, नरेन्द्र अरहर 3, आजाद के 91-25, मालवीय विकल्प 3, मालवीय विकल्प 6, मालवीय चमत्कार 13, टाइप-7 और टाइप-17 आदि मुख्य देर से पकने वाली किस्में हैं।

कई मृदा एवं बीज जनित फफूंद एवं जीवाणु जनित रोग अंकुरण के दौरान एवं अंकुरण के बाद बीजों को काफी नुकसान पहुंचाते हैं। बीजों के अच्छे अंकुरण तथा पर्याप्त संख्या में स्वस्थ पौधों के लिए कवकनाशी से बीजोपचार की सलाह दी जाती है। इसके लिए प्रति किलोग्राम बीज को 2 से 2.5 ग्राम थायरम तथा 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम से उपचारित करना चाहिए तथा उसके बाद राइजोबियम कल्चर से बीजोपचार करना चाहिए। अच्छी उपज के लिए प्रति इकाई क्षेत्र में पौधों की निर्धारित संख्या अनिवार्य है। कम पौधे होने पर खरपतवारों की वृद्धि एवं स्थापना अधिक होगी तथा उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। 

अरहर की अच्छी उपज के लिए प्रति हेक्टेयर 10-15 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40-50 किलोग्राम फास्फोरस तथा 20 किलोग्राम सल्फर की आवश्यकता होती है। अरहर की अधिकतम उपज के लिए फास्फोरस युक्त उर्वरक जैसे सिंगल सुपर फास्फेट 250 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर अथवा 100 किलोग्राम डीएपी तथा 20 किलोग्राम सल्फर का प्रयोग करना चाहिए। सल्फर को पंक्तियों में बुवाई के समय पोर या नाई की सहायता से देना चाहिए ताकि उर्वरक बीजों के संपर्क में न आए। भरपूर उत्पादन के लिए संतुलित उर्वरक का प्रयोग करें। कुछ क्षेत्रों में जिंक की कमी होने पर 20 किग्रा प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करना चाहिए।