किसान करें सोयाबीन की दो से तीन किस्मों की खेती, बुवाई से पहले रखें इन बातों का ध्यान
किसान करें सोयाबीन की दो से तीन किस्मों की खेती, बुवाई से पहले रखें इन बातों का ध्यान
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सोयाबीन की खेती: मध्यप्रदेश में किसानों ने खरीफ की तैयारी शुरू कर दी है। इस दौरान मौसम विभाग की तरफ से अच्छी खबर भी आई कि इस बार मानसून जल्दी आएगा और बारिश भी सामान्य होगी।  ऐसे में एमपी समेत कई राज्यों में किसान सोयाबीन की फसल पर विचार कर रहे हैं। पूरे देश में सबसे ज्यादा सोयाबीन का उत्पादन मध्य प्रदेश में होता है।

इसके अलावा राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना में भी सोयाबीन की खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है। इसके साथ ही किसान उन्नत किस्मों (Soybean Variety) की तलाश में हैं। आज हम ऐसी ही कुछ बेहतर और अधिक उपज देने वाली किस्मों के बारे में बता रहे हैं।

सोयाबीन की बुआई जून के पहले सप्ताह से शुरू हो जाती है, ऐसे में सोयाबीन की बंपर पैदावार के लिए किसानों को इसकी उन्नत किस्मों और बुआई के बारे में सही जानकारी होना जरूरी है। भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर ने किसानों को जल्द शुरू होने वाले खरीफ सीजन में सोयाबीन के अच्छे उत्पादन की सलाह दी है। संस्थान ने किसानों को 3 वर्ष में केवल एक बार गर्मियों में गहरी जुताई करने की सलाह दी है। इसके अतिरिक्त, भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान ने उपज जोखिम को कम करने के लिए किसानों को एक साथ 2 से 3 सोयाबीन किस्मों की खेती करने की सलाह दी है।

तीन प्रकार की किस्में 
वैज्ञानिकों के अनुसार सोयाबीन के बीज में तीन प्रकार की किस्में होती हैं। जल्दी पकने वाली, मध्यम और देर से पकने वाली। वर्तमान में किसान अन्य प्रजातियाँ जैसे जेएस 9560, जेएस 335, जेएस 9305 बोते हैं, जिससे उन्हें कम उत्पादन मिलता है। लेकिन, अगर किसान 2021, 2022, 2023 में आई नई किस्मों की बुआई करेंगे तो उन्हें 20 फीसदी तक ज्यादा उत्पादन मिल सकेगा। 

सोयाबीन की नई किस्में
जल्दी पकने वाली किस्मों में जेएस 2034, जेएस 9560, आरबीएस 18, एनआरसी 131, एनआरसी 152 शामिल हैं। ये किस्में 85 से 90 दिनों में पक जाती हैं। मध्यम किस्में आरबीएस 2001/4, जेएस 2079, जेएस 20954, एनआरसी 150, एनआरसी 151 हैं। जो 95 से 96 दिन में पक जाती हैं। देर से पकने वाली किस्मों में एनआरसी 136, एनआरसी 142, आरबीएसएम 2011/35, आरबीएस 76, जीएसबी 116 शामिल हैं। अगर इन किस्मों को बोया जाए तो फसल 100 से 110 दिन में पक जाती है। आपको बता दें कि जल्दी उपज देने वाली किस्मों में उपज 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और मध्यम और देर से उपज देने वाली किस्मों में उपज 21 से 22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। 

जुताई की जानकारी
जुताई की तैयारी के लिए संस्थान ने किसानों को 3 साल में केवल एक बार गर्मियों में अपने खेतों की गहरी जुताई करने की सलाह दी है। किसानों से कहा गया है कि वे अपने खेतों की मिट्टी को क्रॉस पैटर्न में जुताई कर मिट्टी को समतल करें। वहीं अगर किसान ने पिछले 3 साल में गहरी जुताई नहीं की है तो एक ही हल से खेत की मिट्टी की दो बार जुताई कर मिट्टी को समतल कर लें। 

जैविक खाद का प्रयोग करें
भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर ने किसानों को सोयाबीन की खेती के लिए जैविक उर्वरकों का उपयोग करने की सलाह दी है। संस्थान ने किसानों से प्रति हेक्टेयर 5 से 10 टन सड़ी हुई खाद या 2.5 टन मुर्गी खाद लेने को कहा है. किसानों को सलाह दी गई है कि जुताई के बाद उसे समतल करने से पहले मिट्टी में मिला दें। 

अंकुरण परीक्षण
सोयाबीन की खेती के लिए बीजों की गुणवत्ता का विशेष ध्यान रखें। उन किस्मों के बीजों का चयन करें जिनकी अंकुरण दर न्यूनतम 70 प्रतिशत हो। इसके साथ ही बीज दर निर्धारित करने के लिए उपलब्ध बीजों का अंकुरण परीक्षण भी अवश्य करें। 

गहरी जुताई के लिए सब-सॉइलर मशीन
इंदौर स्थित सोयाबीन अनुसंधान संस्थान ने किसानों को हर 5 साल में एक बार मिट्टी की गहरी परत को तोड़ने के लिए सब-सॉइलर मशीनों का उपयोग करने की सलाह दी है। सब-सॉइलर मशीन हर 10 मीटर की दूरी पर मिट्टी की कठोर परत को तोड़ देती है, जिससे बारिश का पानी या पानी आसानी से मिट्टी में घुस जाता है। इससे किसानों को सूखे की स्थिति से निजात मिल जाती है।

इसी दूरी पर बुआई करें
संस्थान ने किसानों को बुआई के दौरान पौधे से पौधे की दूरी बनाए रखने की भी सलाह दी है, ताकि खेत में पौधों की अच्छी संख्या बनी रहे। किसानों को सोयाबीन की बुआई के लिए अनुशंसित पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेंटीमीटर रखने की सलाह दी गई है। साथ ही एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी 5 से 10 सेंटीमीटर रखने को कहा गया है. संस्थान ने किसानों को सूचित किया है कि छोटे/मध्यम बीजों की अंकुरण क्षमता बड़े बीज वाली सोयाबीन किस्मों की तुलना में अधिक होती है। 60 से 75 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज दर आर्थिक रूप से लाभकारी होगी, जिससे बीजों का अच्छा अंकुरण हो सकेगा।