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सोयाबीन की खेती करने वाले किसान भाईयों के लिए उपयोगी सलाह

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सोयाबीन की खेती करने वाले किसान भाईयों के लिए उपयोगी सलाह
सोयाबीन की खेती करने वाले किसान भाईयों के लिए उपयोगी सलाह

ऐसे क्षेत्र जहा सोयाबीन की फसल जून माह के दूसरे सप्ताह में बोई गई थी, वर्तमान में पकने की स्थिति में हैं जबकि जुलाई माह के दौरान बोई गई फसल इस समय दाने भरने की स्थिति में हैं। ऐसे में कुछ क्षेत्रों में वारीश होने या उसका पूर्वानुमान किया गया हैं। अतः सलाह हैं कि फसल की स्थिति तथा का मौसम को ध्यान में रख कर ही प्रबंधन के उपाय अपनाये।
जिन क्षेत्रों में लगातार बारिश हो रही हैं, कृपया अपने खेत से अतिरिक्त जल की निकासी हेतु समुचित व्यवस्था करे एवं जलभराव की स्थिति से होने वाले नुकसान से फसल को बचाए
जहाँ पर सोयाबीन की शीघ्र पक्नेवाली सोयाबीन की किस्में जे. एस. 95-60, जे.एस. 20-34, एन. आर. सी. 130, एन. आर. सी 138, जे. एस. 93-05 आदि ) उगाई गई हैं, सलाह हैं कि 90% फलियों का रंग पिला हो जाये, फसल की कटाई कर सकते हैं। इससे बीज के अंकुरण में विपरीत प्रभाव नहीं होता।
सोयाबीन की फलियों में दाने भरने या परिपक्वता की अवस्था में फसल पर होने वाली लगातार बारिश से सोयाबीन की गुणवत्ता में में कमी आ सकती हैं या फलियों के दाने अंकुरित होने की भी सम्भावना हो सकती हैं, अतः सलाह हैं कि उचित समय पर फसल की कटाई करे जिससे फलियों के चटकने से होने वाले नुकसान या फलियों के अंकुरित होने से बीज की गुणवत्ता में आने वाली कमी से बचा जा सके।
सोयाबीन की कटी हुयी फसल को धुप में सुखाने के पश्चात गहाई करें। तुरंत गहाई करना संभव नहीं होने की स्थिति में बारिश से बचाने हेतु फसल को सुरक्षित स्थान पर इकठ्ठा करें।
लगभग 60-75 दिन की सोयाबीन फसल में दूसरी पीढ़ी का प्रकोप उपरी पत्तियों में देखा जा रहा हैं. इस सम्बन्ध में सलाह हैं कि फसल के इस पड़ाव में चक्र भृंग से बहुत अधिक नुकसान होने की सम्भावना कम ही होती है. और इसके नियंत्रण के लिए कीटनाशकों का छिडकाव आर्थिक रूप से लाभकारी नहीं होता. अतः इससे घबराये नहीं और पौधे के ग्रसित भाग को तोड़कर नष्ट करें।
जहा पर सोयाबीन की फसल में भरना प्रारंभ हुआ हैं, चने की इल्ली द्वारा फलियों से छोटे दाने खाने की सम्भावना को देखते हुए सलाह हैं कि फसल पर इंडोक्साकार्ब 15.8ई.सी. ( 333 मि.ली/हे) या टेट्रानिलिप्रोल 18.18 एस. सी. (250-300 मिली/हे) या इमामेक्टीन बेन्जोएट ( 425मिली है) या लैम्बडा सायहेलोविन 04.90 सी. एस. (300 मिली/हे) का छिडकाव करें।
बीजोत्पादन कार्यक्रम वाले खेत में सलाह हैं कि अनुशंसित फफूंदनाशकों कोनाल 25.9% ई.सी. (625 मि.ली/हे). या टेवूकोनाझोल+सल्फर (1.25 कि.ग्रा./हे.) या पायरोक्लोस्ट्रोबीन % 20 डब्ल्यू. जी. (375-500 ग्रा. हे.) | या पायरोक्लोस्ट्रोबीन + इपिक्साकोनाजोल 50g// एस. ई. ( 750मि.ली/हे.) या फ्लुक्सापग्रोक्साड+ पायरोक्लोस्ट्रोबीन ( 300ग्रा/हे) का छिड़काव करें. इससे फफूंदजनित रोगों (रायजोक्टोनिया एरिअल ब्लाइट तथा एन्थ्राक्क्रोज) का नियंत्रण भी हो जायेगा।
पीला मोज़ेक रोग के नियंत्रण हेतु सलाह है कि तत्काल रोगग्रस्त पौधों को खेत से उखाड़कर निष्कासित करें तथा इन रोगों को फैलाने वाले वाहक सफ़ेद मक्खी की रोकथाम हेतु पूर्वमिश्रित कीटनाशक थायोमिथोक्सम + लैम्ब्डा सायलोथ्रिन (125 मिली /हे) या बीटासायफ्लुनिन+इमिडाक्लोप्रिड (350 मिली/हे) का छिड़काव करें इनके छिड़काव से तना मक्खी का भी नियंत्रण किया जा सकता है यह भी सलाह है कि सफ़ेद मक्खी के नियंत्रण हेतु कृषकगण अपने खेत में विभिन्न स्थानों पर पीला स्टिकी ट्रैप लगाएं।